रविवार, 21 फ़रवरी 2016

चल रहा हूँ मैं अकेले जिन्दगी की राह में

-मिथिलेश आदित्य
चल रहा हूँ मैं अकेले जिन्दगी की राह में,                     
जैसे कोई डूबता हो खुद अपनी आह में

क्या मनाऊँ मैं खुशी आजादी गुलशन की,
अब कोई आशा नहीं बॉकी दिले आगाह में

मैं तलब करता नहीं और कुछ इसके सिवा,
जिन्दगी गुजरे हमारी बस तुम्हारी चाह में

जालिमों को तरस क्या आये हमारे हाल पर,
रहम का जज्बा नहीं होता दिले बदख्वाह में

बादलों की रंगत है हर मोड़ पर एक जैसी,
ढ़ककर आदित्य को बरस जाता है वाह में
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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

सब कुछ बन जाता है प्यार से

-मिथिलेश आदित्य
सब कुछ बन जाता है प्यार से,      
चाहे काम हो फूल या खार से ।

जमीं-जैसा सहने लगा वो सभी,
निकला न जो हालात ए द्वार से ।

अश्क ए समन्दर में वो डूब गया,
खो गया जो जीवन में हार से ।

जुबां से नफरत की बू आ गयी,
ठोकरें खायी में जब यार से ।
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सुबह-शाम होती रहती है जिन्दगी में


-मिथिलेश आदित्य
सुबह-शाम होती रहती है जिन्दगी में,
उदास हूँ ऐसा नसीब अपनी जिन्दगी में

घोड़े की दौड़ में दुनियाँ है शामिल,
आह, क्या बितेगा लँगडों की जिन्दगी में

मधुर रिश्ते बने भी तो आपसे कैसे,
काँटों के सिवा कुछ ना मिला जिन्दगी में

हुआ हाल ऐसा कि सह लेते सबों की बात,
वरना सहने लायक कुछ नहीं जिन्दगी में

चला अब नहीं जाता है किसी के भरोसे,
कुछ दवा ऐसा ही मिला है जिन्दगी में

यह तमाशा रौशनी का ही है आदित्य,
कि होते सितारे चाँद की जिन्दगी में
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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

गुमशुदा लोगों की तलाश है मुझे


मिथिलेश आदित्य
गुमशुदा लोगों की तलाश है मुझे,
मिलेगा कहीं नसीब पे आस है मुझे

वक्त चाहे करवट ले बहरुपियों सा,
बेनकाब करने के शीशे पास है मुझे

तुम्हें देखकर सगुन बनता है ऐसा,
कि देता साथ जमीं आकाश है मुझे

ऊपज फिजा का हुआ हूँ देखो कैसा,
सहर जिन्दगी कर रहा नाश है मुझे

भीड़ इतना बड़ा क्यूँ हुआ काहिलों का,
यह सवाल कर जाता उदास है मुझे

हालातों से बाँधे गए जिनके बढ़े कदम,
सचमुच वो दिखने लगा लाश है मुझे
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तुमने मुझसे ऐसी दोस्ती की है

-मिथिलेश आदित्य
तुमने मुझसे ऐसी दोस्ती की है,
प्यार से जिन्दगी में रोशनी दी है

मिली तुम तो मैं इक मकाम पाया,
मेरे दिल में रहती तितली सी है

होंगे नहीं हमतुम कभी जुदा,
जमीं इक चराग की असली सी है

सच सामने बोला नहीं जा रहा,
जुबां हो गयी अब नकली सी है

तुमको पाकर उग रहा आदित्य,
पास रहकर तुम जिन्दगी सी है
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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

इस तरह से आदमी सो रहा है

-मिथिलेश आदित्य
इस तरह से आदमी सो रहा है,
सभी से अपनापन खो रहा है ।

चारों तरफ नफरत है फैला,
जिगर वाला आज रो रहा है ।

जिसके पास बल है मुट्ठी में,
वो दूसरे का नहीं हो रहा है ।

बेहतर इनाम उसे ही अब मिले,
टुटा हुआ दिल जो ढ़ो रहा है ।

जिन्दगी लिए उगा है आदित्य,
उजाले को जहां में बो रहा है ।

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अजीब लोग आज होने लगे हैंं

-मिथिलेश आदित्य
अजीब लोग आज होने लगे हैं,
रात से छुपकर सोने लगे हैं ।

दिल में प्यार अब नहीं बसता,
इस वजह से वो रोने लगे हैं ।

मेरे अश्कों से बना है समन्दर,
जहां का दर्द हम ढोने लगे हैं ।

आदमी चमकेगा कभी तो दोस्त,
मेहनत को खेतों में बोने लगे हैं ।

चेहरा साफ दिखे इसलिए आदित्य,
आईना अश्कों से खुद धोने लगे हैं ।

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