सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

इस तरह से आदमी सो रहा है

-मिथिलेश आदित्य
इस तरह से आदमी सो रहा है,
सभी से अपनापन खो रहा है ।

चारों तरफ नफरत है फैला,
जिगर वाला आज रो रहा है ।

जिसके पास बल है मुट्ठी में,
वो दूसरे का नहीं हो रहा है ।

बेहतर इनाम उसे ही अब मिले,
टुटा हुआ दिल जो ढ़ो रहा है ।

जिन्दगी लिए उगा है आदित्य,
उजाले को जहां में बो रहा है ।

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अजीब लोग आज होने लगे हैंं

-मिथिलेश आदित्य
अजीब लोग आज होने लगे हैं,
रात से छुपकर सोने लगे हैं ।

दिल में प्यार अब नहीं बसता,
इस वजह से वो रोने लगे हैं ।

मेरे अश्कों से बना है समन्दर,
जहां का दर्द हम ढोने लगे हैं ।

आदमी चमकेगा कभी तो दोस्त,
मेहनत को खेतों में बोने लगे हैं ।

चेहरा साफ दिखे इसलिए आदित्य,
आईना अश्कों से खुद धोने लगे हैं ।

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