-मिथिलेश आदित्य
इस तरह से आदमी सो रहा है,
सभी से अपनापन खो रहा है ।
चारों तरफ नफरत है फैला,
जिगर वाला आज रो रहा है ।
जिसके पास बल है मुट्ठी में,
वो दूसरे का नहीं हो रहा है ।
बेहतर इनाम उसे ही अब मिले,
टुटा हुआ दिल जो ढ़ो रहा है ।
जिन्दगी लिए उगा है आदित्य,
उजाले को जहां में बो रहा है ।
...
इस तरह से आदमी सो रहा है,
सभी से अपनापन खो रहा है ।
चारों तरफ नफरत है फैला,
जिगर वाला आज रो रहा है ।
जिसके पास बल है मुट्ठी में,
वो दूसरे का नहीं हो रहा है ।
बेहतर इनाम उसे ही अब मिले,
टुटा हुआ दिल जो ढ़ो रहा है ।
जिन्दगी लिए उगा है आदित्य,
उजाले को जहां में बो रहा है ।
...