मिथिलेश आदित्य
गुमशुदा
लोगों की तलाश
है मुझे,
मिलेगा कहीं नसीब
पे आस है
मुझे ।
वक्त चाहे करवट
ले बहरुपियों सा,
बेनकाब करने के
शीशे पास है
मुझे ।
तुम्हें
देखकर सगुन बनता
है ऐसा,
कि देता साथ
जमीं आकाश है मुझे
।
ऊपज फिजा का
हुआ हूँ देखो
कैसा,
सहर ए जिन्दगी
कर रहा नाश
है मुझे ।
भीड़ इतना बड़ा
क्यूँ हुआ काहिलों
का,
यह सवाल कर
जाता उदास है
मुझे ।
हालातों
से बाँधे गए
जिनके बढ़े कदम,
सचमुच वो दिखने
लगा लाश है
मुझे ।