गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

सब कुछ बन जाता है प्यार से

-मिथिलेश आदित्य
सब कुछ बन जाता है प्यार से,      
चाहे काम हो फूल या खार से ।

जमीं-जैसा सहने लगा वो सभी,
निकला न जो हालात ए द्वार से ।

अश्क ए समन्दर में वो डूब गया,
खो गया जो जीवन में हार से ।

जुबां से नफरत की बू आ गयी,
ठोकरें खायी में जब यार से ।
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सुबह-शाम होती रहती है जिन्दगी में


-मिथिलेश आदित्य
सुबह-शाम होती रहती है जिन्दगी में,
उदास हूँ ऐसा नसीब अपनी जिन्दगी में

घोड़े की दौड़ में दुनियाँ है शामिल,
आह, क्या बितेगा लँगडों की जिन्दगी में

मधुर रिश्ते बने भी तो आपसे कैसे,
काँटों के सिवा कुछ ना मिला जिन्दगी में

हुआ हाल ऐसा कि सह लेते सबों की बात,
वरना सहने लायक कुछ नहीं जिन्दगी में

चला अब नहीं जाता है किसी के भरोसे,
कुछ दवा ऐसा ही मिला है जिन्दगी में

यह तमाशा रौशनी का ही है आदित्य,
कि होते सितारे चाँद की जिन्दगी में
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