-मिथिलेश आदित्य
सब कुछ बन जाता है प्यार से,
सब कुछ बन जाता है प्यार से,
चाहे काम हो फूल या खार से ।
जमीं-जैसा सहने लगा वो सभी,
निकला न जो हालात ए द्वार से ।
अश्क ए समन्दर में वो डूब गया,
खो गया जो जीवन में हार से ।
जुबां से नफरत की बू आ गयी,
ठोकरें खायी में जब यार से ।
...
जमीं-जैसा सहने लगा वो सभी,
निकला न जो हालात ए द्वार से ।
अश्क ए समन्दर में वो डूब गया,
खो गया जो जीवन में हार से ।
जुबां से नफरत की बू आ गयी,
ठोकरें खायी में जब यार से ।
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