-मिथिलेश आदित्य
सुबह-शाम होती रहती है जिन्दगी में,
उदास हूँ ऐसा नसीब न अपनी जिन्दगी में ।
घोड़े की दौड़ में दुनियाँ है शामिल,
आह, क्या बितेगा लँगडों की जिन्दगी में ।
मधुर रिश्ते बने भी तो आपसे कैसे,
काँटों के सिवा कुछ ना मिला जिन्दगी में ।
हुआ हाल ऐसा कि सह लेते सबों की बात,
वरना सहने लायक कुछ नहीं जिन्दगी में ।
चला अब नहीं जाता है किसी के भरोसे,
कुछ दवा ऐसा ही मिला है जिन्दगी में ।
यह तमाशा रौशनी का ही है आदित्य,
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