रविवार, 21 फ़रवरी 2016

चल रहा हूँ मैं अकेले जिन्दगी की राह में

-मिथिलेश आदित्य
चल रहा हूँ मैं अकेले जिन्दगी की राह में,                     
जैसे कोई डूबता हो खुद अपनी आह में

क्या मनाऊँ मैं खुशी आजादी गुलशन की,
अब कोई आशा नहीं बॉकी दिले आगाह में

मैं तलब करता नहीं और कुछ इसके सिवा,
जिन्दगी गुजरे हमारी बस तुम्हारी चाह में

जालिमों को तरस क्या आये हमारे हाल पर,
रहम का जज्बा नहीं होता दिले बदख्वाह में

बादलों की रंगत है हर मोड़ पर एक जैसी,
ढ़ककर आदित्य को बरस जाता है वाह में
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