-मिथिलेश
आदित्य
चल रहा हूँ
मैं अकेले जिन्दगी
की राह में,
जैसे कोई डूबता
हो खुद अपनी
आह में ।
क्या मनाऊँ मैं खुशी
आजादी ए गुलशन
की,
अब कोई आशा
नहीं बॉकी दिले
आगाह में ।
मैं तलब करता
नहीं और कुछ
इसके सिवा,
जिन्दगी
गुजरे हमारी बस
तुम्हारी चाह में
।
जालिमों
को तरस क्या
आये हमारे हाल
पर,
रहम का जज्बा
नहीं होता दिले
बदख्वाह में ।
बादलों की रंगत
है हर मोड़
पर एक जैसी,
ढ़ककर आदित्य को बरस
जाता है वाह
में ।
...
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